Chidiya (2025)

Chidiya IMDb रेटिंग: ⭐ 8.8/10
निर्देशक: मेहरान अमरोही
मुख्य कलाकार: विनय पाठक, अमृता सुभाष, शरयास तलपड़े, इनामुलहक, बृजेंद्र काला, स्वर कांबले, अयुष पाठक

Chidiya (2025)
Chidiya (2025)

परिचय

Chidiya‘ उन दुर्लभ हिंदी फिल्मों में से एक है जो दिल को छू लेने वाली कहानी को बेहद सरलता और ईमानदारी से कहती है। यह कोई बड़ी या भव्य फिल्म नहीं है, लेकिन इसकी ताकत इसकी सादगी और मानवीय संवेदना में है। यह फिल्म बताती है कि सपने सिर्फ अमीरों के नहीं होते – मेहनतकश बच्चों के भी होते हैं। निर्देशक मेहरान अमरोही एक ऐसी दुनिया रचते हैं जो छोटी है, तंग है, लेकिन उसमें उम्मीद की उड़ानें भरी जा सकती हैं।

Chidiya कहानी का सार

मुंबई के एक संकरे चॉल में रहने वाले दो भाई – शानू (स्वर कांबले) और बुआ (अयुष पाठक) – का सपना है बैडमिंटन खेलना। उनके पिता का हाल ही में निधन हो गया है और उनकी माँ वैष्णवी (अमृता सुभाष) घर चलाने के लिए दिन-रात मेहनत करती हैं। बच्चों की पढ़ाई छूट चुकी है और वे माँ की मदद के लिए अब साड़ियाँ डिलीवर करते हैं, जिन्हें वैष्णवी सिलती है।

एक तरफ ग़रीबी की मार है, दूसरी तरफ उनके मन में छुपा एक मासूम सपना – एक बैडमिंटन कोर्ट बनाना, जहां वे अपने जैसे बच्चों के साथ खेल सकें। उनके चॉल का मैदान उनका स्टेडियम बन जाता है, जहाँ वे कभी मिट्टी बिछाते हैं तो कभी रोशनी के लिए शूटिंग सेट से लाइट उधार लाते हैं। यह संघर्ष की कहानी है, लेकिन इसे कभी भी बोझिल या निराशाजनक नहीं बनने दिया गया है।

भावनात्मक पक्ष और विषय-वस्तु

Chidiya‘ के केंद्र में बाल्यकाल की मासूमियत, भाईचारा, और सपनों की सच्चाई है। यह फ़िल्म गरीबी की बात ज़रूर करती है, लेकिन इसके लहजे में शिकवा नहीं है। यहां संघर्ष है, लेकिन साथ ही इंसानियत भी है – वो चायवाला जो उन्हें चुपके से पानी देता है, वो ठेकेदार जो बिना पैसे लिए रेत और खंभे दे देता है, और वो फिल्म क्रू जो रात को खेलने के लिए लाइट्स लगाने में मदद करता है।

यह फिल्म हमें बताती है कि सपनों के लिए जरूरी नहीं कि आपके पास पैसा हो – ज़रूरी है जुनून, लगन और साथ। और जब साथ मिल जाता है, तो सबसे संकरे गलियों में भी Chidiya उड़ान भर सकती है।

कलाकारों का अभिनय

स्वर कांबले और अयुष पाठक के अभिनय की तारीफ जितनी की जाए, कम है। दोनों बच्चों ने इतने स्वाभाविक ढंग से अपने पात्र निभाए हैं कि एक पल को भी लगता नहीं कि वे अभिनय कर रहे हैं। उनके बीच की बॉन्डिंग, मासूमियत और जोश हर दृश्य में झलकता है।

अमृता सुभाष एक बार फिर अपनी अदाकारी का लोहा मनवाती हैं। एक ऐसी माँ के रूप में जो अपने बच्चों की परवरिश और घर की ज़िम्मेदारी अकेले संभाल रही है, उन्होंने संयमित और गहराई से भरा प्रदर्शन किया है। विशेषकर वह दृश्य जहाँ वह अपने बच्चों को शूटिंग के लिए 15 दिन के लिए बाहर भेज रही होती हैं – वह सीन दिल को छू जाता है।

विनय पाठक हमेशा की तरह भरोसेमंद हैं। एक मामूली स्पॉटबॉय होने के बावजूद उनका किरदार “बाली” बच्चों के लिए प्रेरणा और सहारा दोनों है। इनामुलहक एक मज़ेदार टेलर के रूप में दिखाई देते हैं, जिनकी बातों में मज़ाक है, लेकिन कहीं न कहीं वे भी इन बच्चों की मदद करना चाहते हैं। बृजेंद्र काला का छोटा सा किरदार भी असर छोड़ता है।

निर्देशन और प्रस्तुति

मेहरान अमरोही ने ‘Chidiya’ को एक स्लाइस ऑफ लाइफ फिल्म के रूप में प्रस्तुत किया है – कहीं कोई ओवरड्रामा नहीं, कोई नकारात्मक किरदार नहीं, कोई क्लिच नहीं। उनका निर्देशन न केवल विषय के प्रति संवेदनशील है, बल्कि दर्शकों की भावनाओं को धीरे-धीरे पकड़ता है।

फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफी साधारण है लेकिन प्रभावशाली – चॉल की गलियाँ, छतों पर दौड़ते बच्चे, फिल्म सेट का शोरगुल – यह सब मिलकर एक जीवंत लेकिन ज़मीनी दुनिया बनाते हैं। बैकग्राउंड स्कोर हल्का है, भावनाओं को उभारने में सहायक, लेकिन कभी भी हावी नहीं होता।

कुछ यादगार दृश्य

  • जब बच्चे अपने चॉल में खुद बैडमिंटन कोर्ट बनाने लगते हैं

  • इनामुलहक का कपड़ों से बैडमिंटन नेट बनाना

  • शूटिंग सेट की लाइट्स में रात को बच्चों का खेलना

  • माँ का बच्चों को शूट पर भेजने से पहले चुपचाप रोना

  • बाली, वैष्णवी और बच्चों का उस गुजर चुके पिता को याद करना

सारांश

Chidiya‘ केवल एक फिल्म नहीं है – यह एक भावना है। यह उन बच्चों की कहानी है जिनके पास संसाधन नहीं हैं, लेकिन सपने ज़रूर हैं। यह दिखाती है कि सच्ची मदद रिश्तों से मिलती है – न कि व्यवस्था से। यह आपको रुलाती है, हँसाती है और अंत में उम्मीद से भर देती है।

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है कि यह बिना शोर किए, एक सादा लेकिन असरदार कहानी कहती है – जो बच्चों के लिए भी है और बड़ों के लिए भी। अगर आप एक पारिवारिक, सच्चाई से जुड़ी, दिल को छू लेने वाली फिल्म देखना चाहते हैं – तो ‘Chidiya‘ को ज़रूर देखें।

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