
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री CM Dhami ने राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था में एक ऐतिहासिक और निर्णायक हस्तक्षेप करते हुए हरिद्वार नगर निगम में हुए 54 करोड़ रुपये के भूमि घोटाले में बड़ी कार्रवाई की है। इस कार्रवाई में दो IAS, एक PCS अधिकारी समेत कुल 12 अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है। यह न सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ मुख्यमंत्री की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का परिचायक है, बल्कि राज्य में प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता की दिशा में एक अहम कदम भी माना जा रहा है।
हरिद्वार भूमि घोटाले का पूरा मामला
यह घोटाला हरिद्वार नगर निगम की ओर से एक कृषि भूमि को बाजार दर से कहीं अधिक मूल्य पर खरीदने से जुड़ा है। 15 करोड़ रुपये की भूमि को 54 करोड़ में खरीदा गया, वो भी बिना किसी तत्काल आवश्यकता या नियामकीय प्रक्रिया के अनुपालन के। जांच में पाया गया कि यह भूमि कूड़े के ढेर के पास थी और उसकी न तो वर्तमान में जरूरत थी, न ही उसकी खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती गई।
प्रक्रिया के तहत इस प्रकार की भूमि खरीद के लिए एक लैंड पुलिंग कमेटी की आवश्यकता होती है, जो इस मामले में गठित ही नहीं की गई। इसके बावजूद जिलाधिकारी ने इस सौदे को हरी झंडी दे दी। वहीं, जांच में यह भी सामने आया कि भूमि के उपयोग को कृषि से वाणिज्यिक में बदलने की प्रक्रिया भी केवल 2-3 दिनों में निपटा दी गई, जबकि यह प्रक्रिया आमतौर पर समय लेती है और विभिन्न स्तरों पर समीक्षा की जाती है।
जांच की प्रक्रिया और रिपोर्ट
CM Dhami ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच की जिम्मेदारी IAS रणवीर सिंह चौहान को सौंपी थी। रणवीर चौहान ने हरिद्वार जाकर पूरी जानकारी इकट्ठा की और एक 100 पेजों की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर शासन को सौंपी। रिपोर्ट में भूमि खरीद प्रक्रिया, मूल्यांकन, और अनुमतियों में गंभीर अनियमितताओं की पुष्टि हुई।
जांच रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट हुआ कि नियमों को दरकिनार कर कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने मिलकर यह घोटाला अंजाम दिया। रिपोर्ट के आधार पर तुरंत कार्रवाई करते हुए मुख्यमंत्री ने उच्च स्तर पर सस्पेंशन का निर्णय लिया।
सस्पेंड किए गए वरिष्ठ अधिकारी
कर्मेंद्र सिंह – जिलाधिकारी, हरिद्वार: प्रशासनिक स्वीकृति देने में संदिग्ध भूमिका
वरुण चौधरी – नगर आयुक्त, हरिद्वार: प्रक्रिया की अनदेखी कर प्रस्ताव पारित किया
अजयवीर सिंह – SDM (PCS): निरीक्षण और सत्यापन में लापरवाही
अन्य सस्पेंड अधिकारी/कर्मचारी
निकिता बिष्ट – वरिष्ठ वित्त अधिकारी, नगर निगम
विक्की – वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक
राजेश कुमार – कानूनगो
कमलदास – प्रशासनिक अधिकारी, तहसील
रविंद्र कुमार दयाल – प्रभारी सहायक नगर आयुक्त
आनंद सिंह मिश्रवाण – अधिशासी अभियंता
लक्ष्मीकांत भट्ट – कर एवं राजस्व अधीक्षक
दिनेश चंद्र कांडपाल – अवर अभियंता
वेदपाल (सेवानिवृत्त) – संपत्ति लिपिक, जिनका सेवा विस्तार समाप्त कर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी गई है
विजिलेंस को सौंपी गई जांच
इस मामले की अगली जांच विजिलेंस विभाग को सौंपी गई है। विजिलेंस विभाग अब यह जांच करेगा कि किस स्तर पर किन-किन नियमों का उल्लंघन हुआ और इसमें किसका कितना सीधा या परोक्ष योगदान था। इस जांच में नगर निगम द्वारा दी गई वित्तीय स्वीकृतियों, फाइलों के अनुमोदन, और प्रशासनिक अनुमतियों की भी गहन समीक्षा की जाएगी।
शासन में बनी थी ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ की लॉबी
रिपोर्ट सामने आने के बाद कुछ वरिष्ठ अफसरों को बचाने की कोशिशें भी हुईं। शासन के भीतर एक लॉबी IAS अधिकारियों के लिए सॉफ्ट कॉर्नर बनाए रखे हुए थी, जिसने जांच रिपोर्ट आने के बाद इन अफसरों को निलंबन से बचाने के प्रयास किए। लेकिन CM Dhami की सख्ती और स्पष्ट नीति के चलते यह लॉबी बैकफुट पर आ गई।
CM Dhami की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति
CM Dhami ने स्पष्ट किया है कि राज्य में भ्रष्टाचार किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि चाहे अधिकारी कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, यदि वह जनता की गाढ़ी कमाई से खिलवाड़ करता है, तो उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह फैसला उत्तराखंड की राजनीतिक और प्रशासनिक संस्कृति में एक निर्णायक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
क्या है धारा 143 (UP Revenue Code)?
इस मामले में बार-बार धारा 143 का ज़िक्र हुआ है। यह धारा उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की वह प्रावधान है जिसके तहत कृषि भूमि को गैर-कृषि भूमि में बदला जा सकता है। लेकिन इसकी प्रक्रिया काफी जटिल होती है, जिसमें समय लगता है। नियमों के तहत निरीक्षण, रिपोर्ट और अनुमतियों का पालन करना जरूरी होता है। लेकिन हरिद्वार मामले में यह सब केवल 2-3 दिनों में निपटा दिया गया, जिससे संदेह और गहरा हो गया।
हरिद्वार में ₹54 करोड़ की ज़मीन खरीद में मिली अनियमितताओं के बाद मुख्यमंत्री श्री @pushkardhami जी ने बिना किसी देरी के जिलाधिकारी, एसडीएम और पूर्व नगर आयुक्त को निलंबित किया है।
यह सरकार की भ्रष्टाचार के प्रति “जीरो टॉलरेंस” नीति का स्पष्ट उदाहरण है, जो हर सरकारी अधिकारी के… pic.twitter.com/KPv4QbGOcZ
— BJP Uttarakhand (@BJP4UK) June 3, 2025
निष्कर्ष
CM Dhami द्वारा की गई यह कार्रवाई उत्तराखंड प्रशासन में नैतिकता और पारदर्शिता की एक नई मिसाल बनकर उभरी है। जहां अब तक भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई टाल-मटोल का शिकार होती थी, वहीं पहली बार राज्य में जिलाधिकारी, नगर आयुक्त और SDM जैसे शीर्ष अधिकारियों को उनके पदों से हटाकर विभागीय जांच के घेरे में लाया गया है।
हरिद्वार भूमि घोटाला सिर्फ एक भ्रष्टाचार का मामला नहीं, बल्कि एक चेतावनी है – कि यदि किसी भी सरकारी अधिकारी ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया, तो CM Dhami की सरकार उसे बख्शने वाली नहीं है।
डिस्क्लेमर:
यह लेख सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी और समाचार रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी केवल सूचना हेतु है। किसी व्यक्ति या संस्था को बदनाम करने का उद्देश्य नहीं है।