रेटिंग: 4/5 ⭐⭐⭐⭐

करण तेजपाल द्वारा निर्देशित ‘Stolen‘ एक ऐसी फ़िल्म है जो थ्रिलर शैली को मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक यथार्थ से जोड़ते हुए एक नई दिशा देती है। राजस्थान के एक छोटे से रेलवे स्टेशन की पृष्ठभूमि में रची गई यह कहानी, दो भाइयों और एक गरीब माँ के माध्यम से हमें उस भारत की झलक देती है जिसे अक्सर हिंदी सिनेमा नज़रअंदाज़ करता है। फिल्म एक बच्चे के लापता होने के बाद घटने वाली घटनाओं को दिखाती है, लेकिन इसकी जड़ें कहीं गहराई तक जाती हैं – वर्ग भेद, अविश्वास, और उस व्यवस्था की विफलता जो सबसे ज़्यादा ज़रूरतमंद को सबसे पहले छोड़ देती है।
Stolen कहानी का सारांश
‘Stolen‘ की शुरुआत एक साधारण रात से होती है – गौतम (अभिषेक बनर्जी), एक आत्मविश्वासी और ऊँचे वर्ग से आने वाला व्यक्ति, अपने छोटे भाई रमन (शुभम वर्धन) को ट्रेन से लेने के लिए राजस्थान के एक सुनसान रेलवे स्टेशन पर आता है। उनकी माँ की शादी है और दोनों को जल्द ही घर पहुँचना है। लेकिन नियति की योजना कुछ और है। प्लेटफ़ॉर्म पर सो रही झुम्पा (मिया मेलज़र), एक गरीब माँ, जागती है और पाती है कि उसकी छोटी बच्ची गायब है।
रमन, जो पास ही था, संदेह के घेरे में आता है। भले ही उसे जल्द ही निर्दोष मान लिया जाता है, लेकिन पुलिस उसे गवाह के तौर पर रोक लेती है। यहीं से शुरू होती है एक रात की भागदौड़, जिसमें हर मोड़ पर हालात बिगड़ते जाते हैं। सोशल मीडिया पर भाइयों की SUV की तस्वीर वायरल हो जाती है, और देखते ही देखते दोनों अपहरण के आरोप में भीड़ के गुस्से का निशाना बन जाते हैं।
निर्देशन और पटकथा
करण तेजपाल की यह पहली फ़िल्म है, लेकिन वह जिस आत्मविश्वास और नियंत्रण के साथ इस संवेदनशील कहानी को पर्दे पर उतारते हैं, वह काबिले-तारीफ है। ‘Stolen‘ की सबसे बड़ी ताकत है इसकी संक्षिप्त, केंद्रित और अनावश्यक चीज़ों से दूर रहने वाली पटकथा। फ़िल्म में कोई बैकस्टोरी नहीं है, कोई भावनात्मक फ्लैशबैक नहीं है – सिर्फ़ वही दिखाया गया है जो इस रात में घटता है। यह एक तरह का रियल टाइम थ्रिलर बन जाता है, जहाँ हर पल की गिनती होती है।
90 मिनट से थोड़ी अधिक लंबाई वाली यह फ़िल्म एक पल के लिए भी धीमी नहीं पड़ती। शुरुआत से ही दर्शक कहानी में उलझ जाते हैं और अंत तक उस तनाव, बेचैनी और रहस्य में डूबे रहते हैं।
प्रदर्शन
अभिषेक बनर्जी: अपने किरदार गौतम को एक परतदार इंसान के रूप में प्रस्तुत करते हैं – जो ऊपरी तौर पर सख़्त और जिद्दी है लेकिन धीरे-धीरे हालात के आगे झुकता है और अंदर से टूटता जाता है। उनकी आँखों में डर, ग़ुस्सा और असहायता का जो मिश्रण है, वह अद्भुत है।
शुभम वर्धन: का किरदार रमन, एक शांत और सोचने-समझने वाला युवा है। उसके और गौतम के बीच का संबंध बहुत वास्तविक लगता है – जैसे कि दो भाई जो अलग सोच रखते हैं, लेकिन एक-दूसरे के लिए हमेशा खड़े रहते हैं।
मिया मेलज़र: झुम्पा के रूप में फिल्म की आत्मा हैं। उनकी भूमिका बोलने से ज़्यादा महसूस करने की है। उनके चेहरे की व्यथा, उनकी आँखों का डर, और उनके हर एक भाव में उस माँ की लाचारी झलकती है जो अपने बच्चे की तलाश में टूट रही है। यह एक बहुत ही संवेदनशील और दिल को छू लेने वाला अभिनय है।
सिनेमैटोग्राफी और तकनीकी पक्ष
‘Stolen’ की सिनेमैटोग्राफी इसकी कहानी को गहराई देती है। प्राकृतिक रोशनी और लंबे दृश्यों का इस्तेमाल, धूल से भरे प्लेटफ़ॉर्म और ठंडी रात की ख़ामोशी – यह सब मिलकर एक अनकही बेचैनी पैदा करते हैं। कैमरा कभी तेज़ नहीं होता, लेकिन हर पल आपको कहानी के करीब लाता है।
बैकग्राउंड स्कोर लगभग न के बराबर है, जो फिल्म की रियलिज़्म को और मज़बूत बनाता है। कोई भावनात्मक संगीत नहीं, कोई नाटकीय ध्वनि नहीं – सिर्फ़ पात्रों की साँसें, उनके कदमों की आवाज़ और सन्नाटा। यह फ़िल्म को और ज़्यादा प्रभावशाली बनाता है।
थीम और सामाजिक सन्देश
‘Stolen’ एक थ्रिलर जरूर है, लेकिन इसके पीछे एक गहरी सामाजिक टिप्पणी छुपी है। यह फ़िल्म भारत के उन दो चेहरों को दिखाती है – एक ओर विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग, जो पुलिस से बातचीत कर सकता है, संसाधनों तक पहुँच रखता है; और दूसरी ओर झुम्पा जैसी माँ, जिसे न तो कोई पूछता है और न ही कोई सुनता है। यह फ़िल्म अविश्वास की उस गहरी खाई की भी बात करती है जो समाज में बन गई है – जहाँ हर कोई एक-दूसरे को शक की निगाह से देखता है और अफ़वाहें सच्चाई से ज़्यादा तेज़ी से फैलती हैं।
निष्कर्ष:
‘Stolen’ एक ऐसी फ़िल्म है जो अपने छोटे बजट और सादगी के बावजूद बड़ा प्रभाव छोड़ती है। यह एक सच्चाई पर आधारित थ्रिलर है जो सस्पेंस से ज़्यादा संवेदनाओं से जुड़ी है। इसमें कोई चमक-दमक नहीं, कोई ड्रामेबाज़ी नहीं – सिर्फ़ एक कड़वी रात की कसी हुई कहानी है, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देती है।
यदि आप ऐसी फ़िल्मों के प्रशंसक हैं जो सच्चाई के करीब हों, तेज़ रफ़्तार में आगे बढ़ें और भावनात्मक रूप से असरदार हों, तो ‘Stolen‘ ज़रूर देखें। यह उस थ्रिलर की मिसाल है जो कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है।
The realism and treatment in films like #Stolen make them so impactful that it totally shatters the myth that you need a big cast, heavy graphics, or designer costumes for a story to have international appeal.
Seriously, Stolen is a must-watch this weekend 💯… pic.twitter.com/e70QDUTvJb
— Ashwani kumar (@BorntobeAshwani) June 4, 2025
डिस्क्लेमर:
यह समीक्षा केवल लेखक की व्यक्तिगत राय और विश्लेषण पर आधारित है। इसमें दी गई सभी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध स्रोतों पर आधारित है। Stolen के प्रति दर्शकों की राय भिन्न हो सकती है। इस समीक्षा का उद्देश्य केवल सूचनात्मक और मनोरंजन के लिए है। इसमें प्रयुक्त किसी भी पात्र, घटना या दृश्य का उल्लेख किसी व्यक्ति, समुदाय या संस्था की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं किया गया है।